________________ ( 434) अनुसार है / वह शरीर का कैसे सहायक हो सकता है! अर्थात् नही होता है। ७-जो यह कल्पना करते हैं, कि धर्म और अधर्म भवान्तर में जीव की सहायता करते हैं, सो भी मिथ्या है। क्योंकि मोक्ष में धर्म और अधर्म दोनों की आवश्यकता नहीं है / इस बात को तो सब मानते हैं कि, मोक्ष में पाप हेय है-त्याज्य है / तत्त्ववेत्ता धर्म को भी मोक्ष में हेय समझते हैं और इस बात को वे युक्तियों और शास्त्रों के द्वारा भली प्रकार समझाते हैं। धर्म पुण्य का कारण होने से बंध रूप है, और जीव मोक्ष उसी समय जासकता है, जब कि पुण्य का भी अभाव हो जाता है। (-इससे जीव शुभ या अशुभ कार्य करता हुआ, संसार में अकेला ही भ्रमण करता है और अपने किये हुए पुण्य पाप का फल भी अकेला ही भोगता है। ९-जीव शुभ भावना भावित अन्तःकरणवाला बनने से मोक्ष लक्ष्मी को भी वह अकेला ही प्राप्त करता है / मोक्ष में सब संबंधों का अभाव है, वहाँ भी वह अकेला ही रहता है। १०-संसार के दुःख को और मोक्षके सुख को भी जीव अकेला ही भोगता है। उसमें न कोई सहायक होता है और न भागीदार ही। ११-बंधनरहित पुरुष तैरता हुआ समुद्र के पार होजाता है। परन्तु जिसके हृदय पर या पीठ पर या हाथ पैरों में बोझा होता है, वह पार नहीं पहुंच सकता है। १२-इसी तरह संसार से उन्मुख बना हुआ, यानी भार रहित बना हुआ जीव ही अकेला संसार