________________ ( 41) जइ ते सुया वेयरणी मिदुग्गा णिसिओ जहाखुर इव तिक्खसोया। तरति ते वेयरणी मिदुग्गां उसुचोइया सत्तिसुहम्ममाणा // 2 // किलेहिं विन्झंति असाहुकम्मा नावं उविते सइविष्पहूणा / अन्ने तु सूलाहिं तिसूलियाहिं दीहाहिं विधूण अहेकरन्ति // 2 // केसिं च बधित गले सिलाओ उदगंसि बोलंति महालयंसि / कलंबुयावालय मुम्मुरे य लोलंति पचंति अ तत्थ अन्ने // 4 // मुगलसे मारो, तलवारसे काटो, त्रिशुलसे भेदो, अग्निसे जलाओ। आदि परमाधार्मिक देवोंके भयंकर शब्द सुनकर, नारकी जीव उक्त चार गाथाओं में बताया हुआ दुःख भोगते हैं। उनका अर्थ इसतरह है: १-अंगारे के ढेर पर और जलती हुई अग्नि की उपमावाली भूमि पर चलते हुए नारकी जीव जलते हैं। ( यद्यपि नरकभूमिको अग्नि की उपमा नहीं लग सकती, क्योंकि वहाँ बाहर अग्निका अभाव है। तथापि नरक के दुःखों का दिग्दर्शन कराने क लिए 'अंगारा' 'अग्नि' आदि का नाम दिया गया है। वास्तव में नरकमें नगरदाह की अपेक्षा भी विशेष वेदना है / ) वे दीन होकर रुदन करते हैं, उनका स्वर विकृत होनाता है। इतना होने पर भी उनका आयुष्य निकाचित होता है, इसलिए उनको नरकही में दीर्घकाल तक रहना पड़ता है। २-श्रीसुधर्मास्वामी जंबूस्वामी से कहते हैं कि,-" हे जंवू ! मैंने श्रीमहावीरस्वामी