________________ (139) वेदना नारकी के जीव निरंतर भोगते रहते हैं। ९-घंटाकार योनि में नारकी जीव उत्पन्न होते हैं। उनको परमाधार्मिक देव उनके जन्म-स्थानमें से ऐसे खींच लेते हैं, जैसे कि, शीशे की सली को जंतीमें से खींच लेते हैं / १०-कईवार वे भयंकर करवत से लकड़े की तरह चीरे जाते हैं और कईवार तिलों की तरह पानी में डालकर पील दिये जाते हैं। ११-बेचारे तृषार्त नारकी जीव वैतरणी नदी में जिसमें कि तपा हुआ शीशा (यानी तपे हुए शीशे के समान उष्ण जल) बहता है-उतार दिये जाते हैं। १२-गरमी से घबराये हुए नारकी नीव असिपत्र वनमें लेनाये जाते हैं। वहाँ परमाधार्मिक देव वायु चलाकर, बरछी और माले के समान पते उन पर गिराते हैं। उनसे उनके नारकी जीवोंके तिल तिलके समान टुकड़े हो जाते हैं। १३परमाधार्मिक देव नारकी जीवों को शाल्मलीनामा वृक्ष परजिसमें वज्र खीलों के समान काँटे होते हैं-चढाते हैं। तथा उनको यह याद दिलाकर कि तुमने जन्मान्तर में परस्त्री के साथ संभोग किया था-खुब गरम की हुई लोहे की पुतली गले लगाने के लिए विवश करते हैं। १५-वे पूर्व माके, मांत लोलुप जीवों का मांस, दूसरे जीवों को खिलाते हैं और मधुलोछुप जीवों को पिघला हुआ शीशा पिलाते हैं / १६-परमाधार्मिक देव ध्राष्टु, रंकु, महाशूल और कुंभीपाकादि की वेदना निरंतर नारकी के जीवों को भुगताते हैं, और उनको भुते की तरह भूनते हैं /