________________ नारकी के जीवों को अन्य परमाधार्मिक देव शूली में बींधकर उलटे लटका देते हैं। ४-कई परमाधार्मिक देव बेचारे अनाथ, मशरण नारकियों को, उन के गले में एक बहुत बड़ी शिला बांध कर, उक्त स्वरूप वाली वैतरणी नदी में डुबाते हैं। वहांसे निकाल कर, उन्हें वे, कदंब पुष्प के समान रंगवाली तपनेसे बनी हुई-रेती में डालते हैं और भट्ठी की आग में डाल कर, उनको चने के समान भूनते हैं। कई नरकपाल उनको लोहे की शलाखों में पिरो कर, मांस के टुकड़े की तरह, सेकते हैं। आदि प्रकार से नरक की वेदनाएं अत्यंत भयंकर हैं। उन का थोडासा नमूना मात्र दिखाया गया है / सातों नरकों में आयुष्य और शरीर भिन्न भिन्न हैं / उस का हम यहां उल्लेख न करेंगे। क्यों कि. ऐसा करना अस्थानमें होगा। तिर्यच गति में दुःख / तिर्यग्गतिमपि प्राप्ताः संप्राप्यैकेन्द्रियादिताम् / .: तत्रापि पृथिवीकायरूपतां समुपागताः // 1 // हलादिशस्त्रैः पाट्यन्ते मृधन्तेऽश्वगनादिभिः / वारिप्रवाहैः प्लाव्यन्ते दह्यन्ते च दवाग्निना // 2 // व्यथ्यन्ते लवणाचाम्लमूत्रादिसलिलैरपि / लवणक्षारता प्राप्ताः क्वथ्यन्ते चोष्णवारिणि // 3 //