________________ (442) से सुना है कि, नरकमें एक वैतरणी नदी बहती है। उसका जल बहुत उष्ण है। वह जीवों को अत्यंत दुःखदायी होता है। उसका प्रवाह अस्त्रों के समान है। उष्ण भूमि में चलने से और अन्य भी कई प्रकार के कारणों से तप्त होकर नारकी जीव शान्त होकर इस नदी की और दौड़ते हैं। मगर वहाँ जा उसे देख, भयभीत होजाते हैं / इतनेही में वहाँ परमाधार्मिक देव, 'बाण' और 'शक्ति' आदि शस्त्रोंद्वारा उन जीवों को वैतरणी नदी में गिराकर, तैरने को विवश करते हैं / ३-अत्यंतखारे, उष्ण और दुर्गंधमय वैतरणी के जलसे नारकी जीव जब बहुत व्याकुल हो जाते हैं, तब परमाधार्मिक देव तपे हुए लोहेके कीलों के एक नौका बनाते हैं, और फिर उन्हें वे जबर्दस्ती घसीट कर उस नौका पर चढ़ाते हैं। कीले चारों तरफसे उनके बदन में घुस जाते हैं और वे बेचारे करुणाक्रंदन करने लगते हैं। नारकियों का शरीर नवनात पक्षी के बच्चे की तरह मुलायम होता है। इस लिए वे वैतरणी के जलसे ही मूच्छित प्रायः हो जाते हैं। मगर गरम लोहे जब उन के शरीर में घुसते हैं, तक वे बहुत बुरी तरहसे रोने चिल्लाने लगते है / (जैसे-डॉक्टर लोग क्लोरोफार्म सुंघा कर, रोगी को वेसुध कर देते हैं, और फिर उस का ओपरेशन करते हैं। तो भी उसके मुंहसे शरीरधर्मानुसार रोगी चिल्ला उठता है और हाथ पैर पछाड़ता है / ऐसी ही दशा नारकी के जीवों की होती है।) मूच्छित