________________ (440) १७-बगुले और कंकादि पक्षियों द्वारा उनके चक्षु आदि अवयव खिंचाये जाते हैं / १८-उक्त प्रकार के महान दुःख झेलते हुए और सुख के लिए तरसते हुऐ नारकी के जीव उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम तक बहुत लंबा काल बिताते हैं। रत्नप्रभा, शर्करापमा, वालुकाप्रभा, पंकमभा, धूमप्रभा तमाप्रभा और महातमप्रभा ये सात नरक की पृथ्वियाँ हैं / ये सातों नरकों के नाम नहीं ह / पृथ्वियों के नाम हैं। नरकों के नाम ये हैं-घमा, वंशा, शैला, अंजना, अरिष्टा, मघा और माघवती, ये सात नरकों के नाम हैं / पहिले के तीन नरकों में परमाधार्मिक देवकृत वेदना होती है। परमाधार्मिकदेव मुवनपति देव विशेष होते हैं / उनके नाम ये हैं;-अंब, अंबर्षि, श्याम, संबल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल, असि, पत्रधनु, कुंभी, वालुक, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष / ये मिथ्यात्वी होते हैं; पूर्वजन्म के महापापी होते हैं, और पाप में स्नेह रखनेवाले होते हैं / वे असुरगति पाकर, नारकियों को दुःख देने ही का कार्य प्राप्त करते हैं। नरकों के विचित्र प्रकारके दुःखों का सुयगडांग सूत्रके पांचवें अध्ययनमें, अच्छा चित्र खींचा गया है। उनमें से चार गायायै यहाँ उद्धत की जाती हैं। इंगालरासिं जलियं सजोति ततोवमं भूमिमणुकमंता / ते डज्जमाणा कलुणं यणन्ति अरहस्सरा तत्थ चिरहितीया // 1 //