________________ ( 343) जाता है / अर्थात् ये चारों सामग्रिया एकत्रित होती हैं, तबही कार्यसिद्धि होती है / इनमें से यदि एक भी सामग्री की कमी होतो, कार्य की सिद्धि नहीं होती / हे भव्यो! द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव से यह समय उत्तम है। सम्यक्त्व की प्राप्ति सुलभ नहीं है / सारे तीर्थकर अपने शिष्यों को इसी तरह का उपदेश देते हैं / इसी तरह मैं भी तुम से कहता हूँ। भूत, भविष्य के तीर्थकर भी इसी तरह का उपदेश करते हैं। इसमें किसी तीर्थंकर का मतभेद नहीं है। सम्याज्ञान, सम्यग्दर्श और सम्यग्चरित्र ही मुक्ति का मार्ग है। सारे तीर्थकर यही बात बताते हैं। इतनाही नहीं, वे स्वयं सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना कर सुव्रत हुए हैं, और सुव्रत के प्रभाव से जगत्पूज्य होकर निर्वाण को पाये हैं। श्रीतीर्थकर देवों का जन्म दूसरे लौकिक देवों की तरह जगत की विडम्बनाओं को हरण करने के लिए नहीं होता है। वे पूर्वजन्म में वीश स्थानक तफ की आराधना कर, पुण्य की प्रकर्षता से तीर्थकर नाम कर्म बाँधते हैं; उसीको क्षय करने के लिए, उनका जन्म होता है। जन्म से मरण पयत का उनका जीवन मनन करने योग्य होता है। उनका कथन कभी एक दुसरे का विरोधी नहीं होता। यानी पहिली बात के अनुसार ही उनकी पिछली बात भी होती है। मगर अन्य देवों का जीवन क्रीडा, विनोद, परस्पर विरोधी कथन आदि से, अप्रामाणिक बीतता है / इस कथन की पुष्टि के लिए