________________ ( 398 ) हटी / वह विशेष रूप से वृद्धा के कपडे चाबने लगी। कपडे खिचने लगे / बुढिया बहुत घबराई / उसने समझा कि यमरान तो अभी मुझे ही उठा ले जायगा / इसलिए वह अधीर हो कर चिल्ला उठी:-" मैं तो बिलकूल अच्छी हूँ / बीमार तो यह मेरे पास में सो रहा है / " पाडी वृद्धा की चिल्लाहट सुन कर, डरी और कपडा छोड कर पीछे को हट गई / वृद्धा के कपड़ों का खिचना बंद हुआ। लडका जागता हुमा सारी बातें सुन रहा था। कारण कि, कर्मयोग से उस समय उसका सन्निपात कम हो गया था / बुढिया मुँह पर ओढ कर सो रही। उसने सोचा-यम छोकरे के प्राण ले गया होगा / अब सवेरे जो कुछ होगा देखा जायगा / लडके को भी सन्निपात के मिट जाने से निद्रा आ गई। बुढियाने सवेरे ही उठ कर देखा तो उसे जान पडा कि लडका निद्रा निकाल रहा है; पाडी खुली हुई है और उसके कपडे चाबे हुए हैं। यमराज की बात झूठ समझ कर, बुढिया पछताने लगी। इतने ही में लडका भी जाग गया / वह उठ कर बोला:-" वाह माता ! खूब किया / मैंने तेरा प्रेम प्रत्यक्ष देख लिया। मेरे मरने पर भी जब तू मरनेवाली नहीं है, तब मेरे साधु हो जाने से तो तु मर ही कैसे सकती है ? माता ! तेरा मुझ पर प्रेम है, और मेरा भी तुझ पर प्रेम है। परन्तु वह केवल स्वार्थ के लिए ही है। इसी लिए तो शास्त्रकारोंने संगमों को स्वप्न की उपमा दी है /