________________ (409) रत्न वापिस लानेकी आज्ञा दी। उन रत्नों का आना जैसे अत्यन्त कठिन था; वैसे ही मनुष्य जन्म पाना भी अत्यन्त कठिन है।" - छछा स्वप्न का दृष्टान्त इसतरह है,-" किसी दिन मूलदेव और एक भिक्षुक उज्जयनी नगरी के बाहिर एक कोठड़ी में सो रहे थे। उस समय दोनों को समान चंद्रपान का स्वप्न आया। मूलदेव उठ, नवकारमंत्र का स्मरण कर, देवदर्शन कर, फलफूल हाथमें ले निमित्तिया के पास गया; और विनयपूर्वक उसने उसको अपना स्वप्न कह सुनाया। अष्टांगके ज्ञाता निमित्तियाने पहिले मलदेव से अपने लड़की के साथ ब्याह करना स्वीकार करवाया और फिर उसको कहा:-" हे मूलदेव / आजके सातवें दिन तुझको राज्य मिलेगा।" और ऐसाही हुआ भी। भिक्षुक का बालक भी उठकर अपने गुरुके पास गया और बोला:" गुरुजी ! मैंने स्वप्न में आज संपूर्ण चंद्र का पान किया है।" उसके अल्पज्ञ गुरुने उत्तर दिया:-" बच्चा ! इस स्वप्न का फल यह होगा कि,-तुझको आज घी, गुडवाली रोटी मिलेगी।" ऐसाही हुआ। कुछ काल के बाद भिक्षुक के बालक को मालूम हुआ कि, उसका और मूलदेव का स्वप्न समान था। मगर मूलदेवने विधिपूर्वक स्वप्न की क्रिया की थी इसलिए उसको राज्य मिला था और मैंने नहीं की थी इसलिए मैं उससे वंचित रहा था। अब मैं फिर वैसा ही स्वप्न देखने के लिए उस कुटिया