________________ (428 ) पवित्र कैसे हो सकता है ? ७-सुगंधित केशर आदि भी निस शरीर में लगने मलिन होजाते हैं उस शरीर में पवित्रता कैसे आ सकती है ! ८-मुँहको शुद्ध बनानेवाला तांबूल खाकर, रात को मनुष्य, सोजाता है, तो शरीर के योगमे वही तांबूल दुर्गधमय बन जाता है-मुँहमें से बदबू आने लग जाती है ऐसा शरीर कैसे पवित्र कहा जा सकता है ? ९-तैलादि से मर्दित किये जाने पर, चंदनादि से विलेपित किये जाने पर और करोड़ों जलके घडों से धोये जाने पर भी शरीर मदिरा के घड़े की तरह स्वच्छ, पवित्र नहीं होता है। 10 -गतानुगतिक लोग कहते हैं, कि मिट्टी, जल, अग्नि, वायु, सूर्य का किरण और स्नान से शरीर पवित्र होजाता है / मगर उनका यह कथन छिलके कूटना मात्र है। मदिरा के घड़े के अनुसार शरीर स्वभाव से ही अशुद्ध है। वह किसी भी उपाय से शुद्ध नहीं होता है। तो भी कई मनुष्य खा, पीके, मलमूत्र त्याग करके जलस्नान कर लेने से देह की शुद्धि मानते हैं; उसीमें धर्म मानते हैं। ये लोग जानते हैं, कि जल में हजारों प्रकार के जीवजन्तु रहते हैं, तो भी वे जल को, हद उपरांत, व्यय करते नहीं डरते हैं। इतनाही क्यों, वे जैन मुनियों की, जो परिमित जलका उपयोग करते हैं-निंदा करते नहीं चूकते हैं। यदि तत्वदृष्टि से विचार किया जायगा तो ज्ञात होगा कि, जैनमुनियों की सारी प्रवृत्तियाँ परोपकार के लिए ही होती है।