________________ (410) में जाकर सोऊँ / ऐसा सोच कर, वह चंद्रपान के स्वप्न के लिए गया / मगर उसी स्वप्न का आना जैसे दुर्लभ है वैसे ही, मनुष्यजन्म पाना भी दुर्लभ है। सातवाँ चक्र का-राधावेध का-दृष्टान्त इस तरह है:-"मानलो कि, एक स्तंभ, है, उस पर आट चक्र निरंतर फिरते रहते हैं। उनमें से चार सीधे फिरते हैं और चार उल्टे फिरते हैं। सब चक्रों के आठ आठ आरे हैं / स्तंभ के ऊपर एक पुतली है। वह भी चक्रों की तरह निरन्तर फिरा करती है। उसके नीचे एक तैल की कढाई भरी रक्खी है / पुतली की बाई आँख का उसमें प्रतिबिंब पड़ता है। जो कोई उस प्रतिबिंब में देख कर, बाणद्वारा पुतली की आँख में बाण मारता है, वही राधावेध साधक समझा जाता है / मगर यह बात बहुत ही कठिन है / इसी तरह मनुष्मजन्म पाना भी बहुत ही कठिन है।" आठवाँ कूर्म का-कछुए का-दृष्टान्त इस तरह है;-"मानलो कि किसी तालाब में एक कछुआ कुटुंब सहित सानंद रहता है। उस तालाब में सेवाल इतनी ज्यादा है कि, कछुआ पानी के बाहिर सिर भी नहीं निकाल सकता है / मगर एक दिन उसके माग्य से, पवनवेग द्वारा सेवाल हट गई / कछुएने बाहिर सिर निकाला / सिर निकालते ही उसको पूर्णचंद्र के दर्शन हुए। कछुएने सोचा, मैं अकेला ही इस दर्शन का आनंद भोगता