________________ ( 420 ) (13) काल को ठगने का कार्य न्यायमार्ग से विरुद्ध है। जैसे कि पूर्व पुरुषों में से किसी भी पुरुष को किसी भी जगह देखना न्याय से-स्वाभाविकता से विरुद्ध है। अर्थात् यह कार्य जैसे असमवित है, वैसे काल से बच जाना असंभवित है। कालने न किसी को छोड़ा है और न किसी को छोड़ेहीगा। तत्ववेत्ताओंने कृतान्त या काल का नाम सर्वभक्षी-सब को खानेवाला समदृष्टिवर्ती-निष्पक्षता से वर्तनेवाला; बताया है। इसका कारण यह है कि, उसमें विवेक नहीं है / इसी तरह उस पर किसी का दबाव भी नहीं है कि जिससे वह अपना कार्य करने से रुक जाय / मोले लोगों के बहकाने के लिए कई ऐसी ऐसी गप्पे भी मारते हैं कि;-" अमुक पुरुष जीवन्मुक्त है; इसलिए वह रात को अमुक स्थान पर आता है; आकर कथा बाँचता है; अमुक पढाता है।" आदि / भाइयो ! यह कल्पना मिथ्या है / कोई भी मनुष्य उसको अनुभव में नहीं लासकता है / शायद वह भूत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस भादि होकर आवे तो आ भी जाय / मगर उसी शरीर से वापिस आता है, या वह मृत्यु से बचा हुआ है। ऐसा मानना सर्वथा भ्रममूलक है / आयुष्य पूर्ण होने पर ईश्वर नामधारी पुरुषों को भी कराल कालने नहीं छोड़ा है / श्रीमहावीर स्वामी के निर्वाण समय, इन्द्रने आकर प्रार्थना की कि,-" हे