________________ ( 419) प्रयत्न में जाता है, इतने ही में वृद्धावस्था आ पहुँचती है। मनुष्य साठ, सत्तर बरस का भी कठिनता से होने पाता है कि, यमराज उसको उठा लेनाता है / ) यदि मनुष्य यह जानने लगजाय कि, उसका जीवन काल के हाथ में है तो वह एक ग्रास भी न ले सके, फिर पापकर्म करने की तो बात ही क्या है ? (7) जैसे जल के अंदर बुबुदे उठते हैं और वे फिर नष्ट हो जाते हैं। वैसे ही प्राणियों के शरीर भी क्षणवार में नष्ट हो जाते हैं (8) धनी हो या निर्धन, राजा हो, या रंक, पंडित हो या मूर्ख; सज्जन हो या दुर्जन; चाहे कोई भी हो / यमराज किसीके साथ पक्षात नहीं करता / वह सबका संहार करता है / (9) जैसे दावानल, राग और द्वेष रक्खे विना सबको जला देता है, इसी तरह काल भी गुणी की तरफदारी किये विना सबको समाप्त कर देता है। (10) कुशास्त्रों के द्वारा मुग्ध बने हुए हे मनुष्यो ! तुम को भी यह तो निश्चय रूप से समझना चाहिये कि, किपी भी उपाय से तुम्हारा शरीर सदा निरुपद्रव न रहेगा (तुम सदा जीवित न रह सकोगे) (11) जो पुरुष मेरु को दंड बनाने का और पृथ्वी को चत्र के समान धारण करने का सामर्थ्य रखता था, वे भी अपने को और दूसरे को काल के मुँह से नहीं बचा सके थे / (12) कीडी से लेकर इन्द्र तक सबपर काल की आज्ञा चल रही है / उन्मत्त के सिवा कौन मनुष्य होगा, जो ( उसकी आज्ञा से मुँह मोड़ने और ) उसको ठगने की बात करेगा ? ( कोई नहीं.)