________________ (415) (2) जो अपनी सुंदर चाल के बल से एक जातिवान अश्व की समानता करता है वही वायु आदि के रोगों से चलने की शक्ति को खो कर पंगु बन बैठता है / (3) जिन बाहुओं के पराक्रम से महान बलवान गिना जाता है, वही कभी रोगादि के कारण एक डाल पातविहीन ढूँठ के समान समझा जाता है। (4) दूर दर्शन की शक्ति के कारण जो एक गीध के समान होता है वही समय के प्रभाव से एक अंधे के समान बन जाता है। (5) अहो / प्राणियों का शरीर क्षण में सुन्दर और क्षण में खराब, क्षण में समर्थ और क्षण में असमर्थ, क्षण में दृष्ट और क्षण में अदृष्ट, हो जाता है / (6) __ शरीर की सार्थकता। यह शरीर यद्यपि क्षणिक है, तथापि धार्मिक पुरुषों के लिए महान उपयोगी है / क्योंकि वे इसको सार्थक बना लेते हैं। शरीर की स्थिति अच्छी होती है, तब इससे तपस्यादि कार्य हो सकते हैं। शरीर को मनुष्य उसी समय सार्थक बना सकता है, जब कि वह उसकी अस्थिरता और अपवित्रता को समझने लग जाय। जो इन दो बातों को सममता है वहीं शरीर को सार्थक बनाने का प्रयत्न करता है / ___ अस्थिरता। शरीर की स्थिति क्षणिक है। जीव क्षणिक शरीर से चिर