________________ (414) विना संसाररूपी कारागार से छुटी नहीं मिलती है / कर्म करता है, ऐसा कोई नहीं करता / देखो उसके विना जीवों की कैसी खराब दशा होती है ? : सौन्दर्येण स्वकीयेन य एव मदनायते / प्रस्तो रोगेण घोरेण कङ्कालयी स एव ही // 1 // य एव च्छेकतामाजा वाचा वाचस्पतीयते / कालान् मुहुः स्खलजिहुः सोपि मूकायतेतराम् // 2 // चारुचक्रमणशक्त्या यो लात्यतुरगायते / वातादिभग्नगमनः पङ्ग्यते स एव हि // 3 // हस्तेनौजायमानेन हस्तिमल्लायते च यः। रोगाद्यक्षमहस्तत्वात् स एव हि कुणीयते // 4 // . दूरदर्शनशक्त्या च गृध्रायेत य एव हि / पुरोऽपि दर्शनाशक्तेरन्धायेत स एव हि // 1 // क्षणाद्रम्यमरम्यं च क्षणाचं क्षममक्षमम् / क्षणाद् दृष्टमदृष्टं च प्राणिनां वपुरप्यहो ! // 6 // . भावार्थ-अपने सौन्दर्य से जो पुरुष कामदेव के समान आचरण करता है, वही पुरुष घोर रोगों से घिरा रहता है, और हड्डियों की माला के समान दिखता है / (1) जिसका वाक-चातुर्य बृहस्पति के समान होता है; वह भी काल के प्रभाव से, स्खलित-जिव्हा होकर मूकता को प्राप्त करता है।