________________ वाली सारी दुनिया है। इसी हेतु से, 'अर्थ' और 'काम' के अभिलाषी भवाभिनंदी जीव प्रायः संसार में बहुत ज्यादा हैं। इसीलिए शास्त्रकार पुकार पुकार कर कहते हैं कि,- 'अर्थ, और 'काम' के सामान दुष्ट पुरुषार्थों में अपने आत्मा की शक्ति को न लगाकर, 'धर्म' और ' मोक्ष ' में लगाओ। (0 मानव-जन्म की दुर्लभता।। अस्मिन्नपारसंसारपारावारे शरीरिणाम् / महारत्नमिवान मानुष्यमिह दुर्लभम् // 1 // मानुष्यकेऽपि संप्राप्ते प्राप्यते पुण्ययोगतः / देवता भगवानर्हन् गुरवश्व सुसाधवः // 2 // ..मानुष्यकस्य यद्यस्य वयं नादमहे फलम् / 3 मुषिताः स्मस्तदधुना चौरेसति पत्तने // 3 // : भावार्थ-इस अपार संसार रूपी महासमुद्र में प्राणियों का मनुष्य जन्म रूपी महारत्न यदि डूब जाय तो उसका वापिस मिलना कठिन है / (1) मनुष्य जन्म पाकर भी मनुष्य पुण्य के योगसे श्री अरिहंत भगवान, देव और सुसाधु गुरु की भांति माने जाते हैं / (2) यदि हम मनुष्य जन्म का अच्छा फल नहीं चक्खें तो, समझना चाहिए कि हम मनुष्यों से भरे हुए बाहर के मध्य भाग में ही लुट गये हैं। (3)