________________ (102) गृहस्थ यदि परस्पर अबाध रूप से तीनों वर्गों का साधन करें, तो वे 'मोक्ष' पुरुषार्थ के साधक हो सकते हैं। परन्तु यदि वे तीन वर्गमें से प्रथम पुरुषार्थ की-धर्म की उपेक्षा करके अर्थ और काम पुरुषार्थ की आराधना करने में लगे रहेंगे तो वे कदापि मोक्ष के अधिकारी न होंगे। वे जब अर्थ और काम के साथ ही साथ धर्म की भी आराधना करेंगे तबही वे मोक्ष के अधिकारी होंगे। केवल अर्थ और काम ही की इच्छा करनेवाले पुरुष-चाहे वे कितने ही बुद्धिमान क्यों न होंनास्तिकों की पंक्ति में बिठाने लायक होते हैं। जिस पुरुष के अन्तःकरण में धर्मवासना का निवास नहीं होता है उसका जन्म वृथा ही जाता है। उसकी बुद्धि उल्टे अपने स्वामी को-आत्मा को-मलिन करती है। इसलिए ऐसी बुद्धि की अपेक्षा यदि वह बुद्धि ही न पाता तो ऐसे अनर्थ न करता। यानी वह नास्तिकता की पंक्ति में न बैठता / यह जीव अनादि काल से उन्मार्ग में चल रहा है। इसलिए नास्तिकों की युक्तियाँ उसके हृदय में जल्दी ही प्रविष्ट होजाती हैं। आस्तिकों की युक्तियाँ जरा कठिनता से उसके हृदय में प्रवेश करती हैं। 'अर्थ' और 'काम' का फल जैसे प्रत्यक्ष देखा जाता है; वैसे ही 'धर्म' और 'मोक्ष' के फल भी, यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो, प्रत्यक्ष ही हैं। मगर सूक्ष्म दृष्टि से विचार करनेवाले बहुत ही थोड़े हैं और स्थूल दृष्टि से विचार करने