________________ (399 ) वास्तविक संग तो धर्म का है।" तत्पश्चात् माता को समझा कर लड़का साधु हो गया / " उक्त उदाहरणोंसे पाठक समझ गये होंगे कि,-"संगमा: स्वप्नसबिमाः / " (संगम स्वप्न के समान हैं। ) वैराग्य का उपदेश करनेवालों को निम्नलिखित श्लोक भी ध्यान में रखने चाहिए / कामक्रोधादिमिस्तापैस्ताप्यमानो दिवानिशम् / आत्मा शरीरान्तस्थोऽसौ पच्यते पुटपाकवत् // भावार्थ-शरीर के अंदर रहा हुआ यह आत्मा पुटपाक की तरह काम और क्रोधादि तापों से रातदिन तपता रहता है / यानी रातदिन दुःख पाता रहता है / विषयेष्वतिदुःखेषु सुखमानी मनागपि / नाहो ! विरज्यते जनोऽशुचिकीट इवाशुचौ // भावार्थ-जैसे विष्ठा का कीड़ा विष्ठा ही में रह कर, सुखी होता है / वह उस से नहीं घबराता है / इसी तरह अति दुःखदायक विषयोंमें मनुष्य मग्न रहता है। उस को उस में लेशमात्र भी दुःख नहीं होता है। वह उस से विरक्त नहीं होता है / दुरन्तविषयास्वादपराधीनमना जनः / अन्धोऽन्धुमिव पदाग्रस्थिते मृत्यु न पश्यति //