________________ ( 388 ) पुत्र पर अत्यंत प्रेम होता है। वह अपने पुत्र के मरण की इच्छा कभी नहीं करती है। परन्तु पुत्र जब किसी असाध्य रोग में फँस जाता है; माता को लगातार रात दिन दो चार महीने तक, उसकी शुश्रूषा करनी पड़ती है; तब माता भी घबरा जाती है और वह कहने लग जाती है कि,-" लड़का अब या तो मर जाय या, अच्छा हो जाय तो ठीक है। " ये शब्द घचराने पर ही निकलते हैं कि-" मरे न माचो छोड़े / " इस विषय में हम यहाँ एक सेठ का दृष्टान्त देते हैं / "किसी शहर में धनपति सेठ का पुत्र अपने मित्रों के साथ नगरसे बाहर गया था। उस समय उसकी भलाई के लिए उसके एक मित्रने उसको कहाः-"इस संसार में धर्म के विना जीव का कोई शरण नहीं है / रक्षा करनेवाला केवल धर्म ही है / माता, पितादि परिवार सब मतलबी है / " यह सुन सेठ के पुत्रने कहाः-" बन्धु ! तुम कहते हो सो ठीक है, मगर मेरे माता पिता वैसे नहीं हैं / " दूसरे दिन दोनों मित्र एक तालाब पर गये / तालाब सूख गया था, इसलिए वहाँ कोई मनुष्य आता जाता नहीं था। और इसी हेतु से वहाँ क्रूर सादि का निवास हो गया था। यह देख कर उसका मित्र बोला:" बन्धु ! देख / इस तालाब में पानी था, तब कितने लोग इस तालाब पर आते थे / कोई स्नान संध्यार्थ आता था और