________________ ( 361) प्रायः कोई नहीं बच सकता है। पामर प्राणी तो बिचारे हैं ही किस गिनती में ! मगर आश्चर्य की बात. तो यह है कि, सर्वज्ञ के समान माने हुए, मोहके अवगुणों को सब तरह से जाननेवाले, अनेक भव्य पुरुषों का उद्धार करनेवाले, पंचमहानत को यथास्थित पालनेवाले, प्रमाद के समान आत्मशत्रुओं को दूर करनेवाले, सम्यक्त्वधारी और विश्वोपकारी पुरुषसिंहों को भी मोह महारान लतियाने से न चूका / मोह महारान एकवार अपनी सभा में उदास होकर बैठे हुए थे / सभाजनों के चहरों पर भी उदासीनता छाई हुई थी। उस सम्य मोहराजा के राग, द्वेष नामा महामंत्रियों ने पूछा:" महाराज ! उदास क्यों हैं ? " मोह महाराजाने धीमे स्वर में कहा:-" मेरे राज्य में से एक आदमी भागकर, मेरे पक्के शत्रु सदागम से जा मिला है / उस सदागमने उस पुरुष को आश्रय देकर पूर्णतया अपने आधीन करलिया है / सदागम की सहायता से उसने मेरा सारा मर्म जगत में प्रकाशित कर दिया है। इसलिये, मुझे डर है कि, जो लोग मेरी आज्ञा को पूर्णतया पालते हैं वे भी अगर मेरे गुप्त रहस्य से परिचित हो जायेंगे, तो मेरा राज्य बहुत समय तक टीका न रहेगा / इसलिये मैं उदास हूँ।" मोहराजा की बात सुनते ही उसके वई सुभट मुस्तैदी से खड़े हुए और कहने लगे:-" महाराज ! क्षणमात्र में हम आपके अपराधी को पकड़कर आपके आधीन