________________ ( 371 ) बनता है। उसकी वृत्ति दामिक हो जाती है। परन्तु बाद में वह मान भी मर्दित हो जाता है कि, जिसके लिए वह हतमागी दंभी बनता है; और परिणाम में अपमान का बहुत बड़ा बोझा सिर पर रख कर, भवचक्र में गौते मारता है। लोम के जोरसे जीव क्रोषाधीन होता है। किसी को धन का लोभ होता है, किसी को कीर्ति का लोभ होता है और किसी को हुकूमत का लोभ होता है / धनके लोभ से व्यापारी लड़ते हैं; और कचहरियों में जाते हैं। और इतने क्रोधांध हो जाते हैं कि अपनी एक पाई के लिए सामनेवाले के लाखों रुपयों का खर्चा करा कीर्ति को धक्का पहुँचाने पर अत्यंत क्रुध होते हैं और उस पर. मानहानि का केस चलाते हैं; उसकी कीर्ति को कलंकित करने का भरसक प्रयत्न करते हैं। हुकूमत के लोभी अपने हुक्म का अपमान होने से क्रोधांध होकर जीवहत्या करने में भी आगा पीछा नहीं करते हैं। मानी वे लाखों मनुष्यों का प्राणविघातक भयंकर युद्ध प्रारंभ करते हैं। इसलिए क्रोध को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए कि, निससे क्रोध तत्काल ही शान्त हो माय / चार कषायें जैसे पाप के कारण हैं, वैसे ही पाप भी कषायों का कारण है / जैसे जन्म पाप का कारण है, वैसे ही पाप जन्म का कारण है / इस तरह अन्योऽन्य कार्य कारण भाव है / इसलिए कषायों को छोड़ोगे तो पाप छूटा जायगा / इसी