________________ (381) सुरक्षित रखने का प्रयत्न नहीं करते। हाँ यदि वे दूसरों के पास की पुस्तकों को सुरक्षित रखने का भी ऐसा ही प्रयत्न करें जैसा कि, वे अपने पास की पुस्तकों का करते हैं, तो उनकी कृति अवश्यमेव ज्ञानमक्ति हो सकती है। यदि कोई शंका करे कि, बहुत से साधु ज्ञानभंडार सुधार दिया करते हैं, उनके लिए तुम क्या कहोगे ? उसके लिए भी हम तो यह कहते हैं कि, वहाँ भी मोह दशा से कार्य किया जाता है। श्रावकों को धोखा देकर पुस्तकें चुरा ली जाती हैं, इसलिए वे पुस्तकरत्न हजारों के अधिकार में से निकलकर, एक ही के अधिकार में चले जाते हैं; और हजारों उन से लाभ उठाने से वंचित हो जाते हैं। क्योंकि वह लोभी मनुष्य दूसरे को उपयोग के लिये पुस्तकें नहीं देता है। पीछे से मंडार के अधिकारियों को जब इस बात की खबर लगती हैं तब उन्हें बहुत बुरा लगता है और वे भंडारों को हमेशा के लिए ताले लगा देते हैं। किसी साधु को वे भंडार नहीं बताते हैं। ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं / परमार्थ बुद्धि के लोग दुनिया में बहुत ही कम होते हैं। वास्तविक ज्ञानभक्ति करनेवाला साधु हम उसीको बतायँगे जो किसी भी पुस्तक पर मोह न रख ज्ञानचैत्य का उपदेश करे, जिससे जगज्जीव लाभ उठा सके, ऐसा ज्ञान का मंदिर बनवावे; जीर्ण पुस्तकों की फिर से प्रतिलिपि करवावे; उन पुस्तकों को सुरक्षित रखने के * लिए, बनोठे और पुढे बनवावे; ज्ञान का बहुमान करे, ज्ञान की