________________ ( 366) जब तक बुढापेने अधिकार नहीं किया है, जब तक रोगने शरीर में अपना अड्डा नहीं जमाया है और जब तक इन्द्रियाँ क्षण नहीं हुई हैं, तब तक हे जीव ! अपना समय धर्म करने में लगा। दूसरी गाथा में 'बल' शब्द का प्रयोग किया गया है। उसका अभिप्राय यह है कि, यदि शरीर में बल हो और मन में बल न हो तो धर्म करना बहुत कठिन होता है / इसलिए 'बल' शब्द से यहाँ मानसिक बल समझना चाहिए / मानसिक बल के 'विना परिसह और उपसर्ग सहन नहीं हो सकते हैं। तो भी केवल मानसिक बल से ही कोई भी क्रिया कार्यरूप में परिणत नहीं की जा सकती है। इसलिए दूसरे 'थाम' शब्द से शारीरिक बल को समझना चाहिए / शारीरिक बल के विना तप, जप, ध्यान, परोपकार और क्रियाकांड नहीं हो सकते हैं। मानलो कि, किसी को शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के बल प्राप्त हो गये हों, मगर चारित्र धर्म पर श्रद्धा न हो तो भी काम नहीं चलता है। श्रद्धा विना जो क्रिया की है, वह बैगार रूप होती है। बैगारी यदि बैगार अच्छी तरह करता है, तो उसका ऊपरवाला; बैगार में पकड़ ले जानेवाला उसको नहीं मारता है। इसीतरह द्रव्य क्रिया करनेवाला कभी नरकादि दुर्गतियों के दुःख नहीं पाता है। मगर जो क्रिया श्रद्धा के विना की जाती है, वह कभी कर्मक्षय का कारण