________________ ( 353 ) भोगता है / जिप ईश्वर की मनुष्य जन्म, जरा और मृत्यु के दुःखों से बचने के लिए सेवा-पूजा करते हैं, वही ईश्वर यदि, जन्म, मरण दुःखसे पीडित हो तो वह अपनी सेवा करनेवालों को इन दुःखों से कैसे बचा सकता है ? अर्थात् नहीं बचा सकता है। जिसमें राग, द्वेष, मोह और अज्ञानादि नहीं हैं वह जन्मजरादि के दुखों से दुखी नहीं होता है। जो उसके वचनों पर विश्वास करता है वह भी जन्म मरण के कष्टों से छूट सकता है / जो जीव राग, द्वेषादि दूषणों से दूषित होता है वह अवश्यमेव जन्म धारण करता है। जो जन्ममरणादि करता है वह ईश्वर नहीं कहा जा सकता है। ईश्वर किसीको हानी, लाभ नहीं पहुँचाता / वह तो केवलज्ञानद्वारा जो कुछ देखता है, उसीका कथन करता है। वह जीवों को लाभ पहुंचानेवाला उपदेश देता है। उसका उपदेश अतीत और अनागत तीर्थकरों के उपदेश से भिन्न नहीं होता है / विरोधी बातें अल्पज्ञ, अवीतरागी और असर्वज्ञों के कथन में होती हैं / सर्वज्ञ, सर्वदर्शी वीतराग भगवान के कथन में नहीं होती; क्योंकि उनको तो त्रिकाल का ज्ञान होता है। इसीलिए सब तीर्थंकर सम्यादर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र ही को मुक्ति का मार्ग बताते हैं। जो उनके वाक्यों पर श्रद्धान करता है, वह सम्यक्स्वी बनकर नियमित समय में मुक्ति पाता है। इसलिए श्रीऋषभदेव भगवानने अपने पुत्रों को उपदेश दिया है कि, 23