________________ ( 354 ) " हे महानुभावो ! तुम्हारे हाथ अत्युत्तम समय आया है।" यही उपदेश श्रीमहावीर स्वामीने अपने गणधरों को दिया था; ' और गणधरोंने अपने शिष्यों को। तीसरे उद्देशे की समाप्ति के साथ दूसरे अध्याय की समाप्ति में कहा है:तिविहेण वि पाणमाहणे आयहिते अणियाण संवुडे / एवं सिद्धा अणंतसो संपइ जे अणागया वरे // 21 // एवं से उदाहु अणुत्तरनाणीअणुत्तरदंसी अणुत्तरनाणदंसणे धरो। अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिये वियाहिये तिबेमि // 22 // भावार्थ-मन, वचन, काया से किसी जीव को मारे नहीं। तथा आत्महित करनेवाला, अतिदान संवृत्त मुनि सिद्धिपद को पाता है / अनन्तकाल में अनन्त जीव सिद्ध हुए, और वर्तमान में मुक्ति पाते हैं ( महाविदेहादि क्षेत्रों की अपेक्षा से ) अनागत काल में मुक्ति पायेंगे। पांच महाव्रतों के पालन के सिवाय अन्य मुक्तिमार्ग नहीं है। (21) पूर्वोक्त तीन उद्देशो में कहे हुए आचार को पालन करनेवाले मुक्ति में गये हैं, जाते हैं और जायेंगे। ऐसा ऋषभदेव स्वामिने अपने पुत्रों को कहा। यही अर्थ श्रीवीरस्वामिने सुधर्मास्वामि को कहा / पूज्य, ज्ञातनंदन, प्रधान केवलज्ञान-केवलदर्शन को धारण करनेवाले एवं विशाल