________________ ( 356 ) साक्षात् कारण है / दश प्रकार के यतिधर्म की साधना, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन के विना नहीं हो सकती है / इसलिए दर्शन, ज्ञान और चारित्ररूप रत्नत्रय मुक्ति का कारण है। महावीर स्वामीने इसको जानकर, व्यवहार में रक्खा था। फिर उन्होंने अपने शिष्यों को इसका उपदेश दिया था ।ऋषभदेव भगवानने, उक्त वैतालिक अध्ययन, भरतद्वारा अपमान प्राप्त अपने पुत्रों को, वैराग्य होने के लिए अष्टापद पर्वत पर सुनाया था। उसीका यहाँ दूसरे प्रकरण में विचार किया गया है। इसको पढ़कर जिनके हृदय में वैराग्य वृत्ति जागृत हुई होगी; और जिन्होंने अपने क्रोध, मान, माया और लोभ को-जिनका वर्णन इस अध्ययन के पहिले किया जा चुका है-कम किया होगा; उनके लिए तीसरे प्रकरण में सामान्य उपदेश का विचार किया जायगा / द्वितीय प्रकरण समाप्त / >