________________ ( 344 ) यहाँ हम दश अवतारों की जीवनियों का थोड़ा सा दिग्दशन करायँगे / जिससे पाठक समझ सकेंगे कि हमारी बात कही तक सत्य है। convencava 3 / दशावतार का वर्णन।। Brasowanctuar वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्विभ्रते दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते / पौलस्त्यं जयते हलं कलयते कारुण्यमातन्वते, म्च्छान् मूर्च्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः।। मत्स्यः कर्मो वराहश्च नरसिंहोऽथ वामनः / रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्की च ते दश || इनमें का पहिला श्लोक जयदेवकृत गीतगोविंद का है। इसमें दश अवतारों का प्रयोजन बताया है। मगर जब तक प्रत्येक अवतार का थोडासा वृत्तान्त नहीं दिया जाय तब तक पाठकों के कोई बात पूरी तरह से समझ में नहीं आयगी। इसी लिए यहाँ उनका थोडासा वृत्तान्त दिया जाता है। प्रथम अवतार / वेदानुद्धरते यह वाक्य मत्स्यावतार का वृत्तान्त सूचित करता है। शंखनामा दैत्य चारों वेदों को लेकर रसातल में गया। उस समय पृथ्वी निर्वेद होगई / देवने मनमें सोचा कि,-"दुष्ट