________________ ( 346) रटता रहा / इससे उसके शरीर में एक भी प्रभाव का असर न हुआ। विष्णुने उसके सत्त्व से प्रसन्न होकर, वरदान दिया कि, तू इन्द्र होगा / तदनुसार वह इन्द्र हुआ। तो भी वह उसको पीडा देता रहा / तब भगवानने नरसिंह का रूप धारण किया। मुख सिंह का और शरीर पुरुष का बना, हिरण्यकशिपु को, पैरोंतले दबा, नाखूनों से सीना चीर दिया, वह मर गया। मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह, ये चार अवतार कृतयुग पाँचवाँ अवतार। बलि नामा दैत्य इन्द्रपद की प्राप्ति के लिए सौ यज्ञ करने का प्रयत्न करता था। प्रयत्न द्वारा उसने 99 यज्ञ पूरे कर दिये। जब अन्तिम यज्ञ प्रारंभ हुआ तब देव को यह सोचकर, गुस्सा आया कि, मैंने प्रह्लाद को इन्द्रपद दिया है, उसको यह ले लेगा! तत्पश्चात् बलि को दंड देने के लिए वे वामन का रूप धारण कर, यज्ञस्थान पर पहुँचे, और कहने लगे:-" हे दानेश्वर ! हे यज्ञ विधायक बलि ! यह समय दान करने के लिए उपयुक्त है।" बलिने पूछा:-" हे ब्राह्मण ! तू क्या चाहता है ? " वामनन उत्तर दिया:-" मैं रहने के लिए साढे तीन पावंहा पृथ्वी चाहता हूँ।" बलीने दी / एक ब्राह्मणने कहा:-" हे राजा ! ये ब्राह्मण नहीं हैं। ये विष्णु भगवान हैं। बामन रूप धारण कर