________________ ( 339 ) असंख्यात बरस तक चला / शुभ पुण्य रूपी अनुकूल पवन के जोरसे वह आगे बढ़ा / पंचेन्द्रिय के मुख्य चार भेद रूप बरफ के पहाडों से टकराता हुआ मनुष्य लोकरूपी महासागर में - जिसका विस्तार पैंतालीस लाख योजन का है पहुँचा / फिर वह अनार्य देश रूप भयंकर विघ्नों को पार कर, आर्यदेश प्रशान्त सागर मे आया / यद्यपि प्रशान्त नाम है तथापि आखिर में मुद्र है। उसमें भी कितना ही हिस्सा अनार्यों से बसा हुआ है। जैसे भिल्ल, पुलिंद, नहाल, कहाल, बर्बर, सैनिक, कैवर्त, खसिक, लेख, संख आदि / ये सब मार्ग की विपत्तियों के समान है / इन सब को भी पार करके वह जहाज उत्तम कुल रूप समुद्र के उस स्थान में पहुँचा जहाँ से बंदर नजर आता है। वहाँ वह पाँच बरस तक ओरी, शीली आदि रूप कल्लोलमाला में गौते खाता रहा / वहाँ से वह आगे बढ़ा / जहाज युवावस्था रूप तुफानी खाड़ी में पहुँचा वाँ, कर्मयोग से और असातावेदनीय के प्रबल ज़ोरसे गलिक, श्वेत आदि 18 प्रकार के महा कोड, चौरासी प्रकार के वायु के उपद्रव, उदररोग, ज्वर, अतिसार, श्वास, कास, भगंदर, हरस, शिरोरोग, कपालरोग, नेत्ररोग, कर्णरोग, कंठमाल, तालुशोष, जिहारोग, दंतरोग, ओष्ठरोग, मुखरोग, कुक्षीशूल, हृदयशूल, पीठशूल और प्रहेहादि पाँच करोड, अडसठ लाख, नन्यानवे हजार, पाँचसौ और चौरासीरोग जो कि औदारिक शरीर में प्रायः हुआ करते हैं-रूप विघ्नों से