________________ ( 338 ) लगे:-" महाराज ! जहान बंदर में से निकल गया। पता नहीं कहाँ गया ? हमने पूरे एक घंटे तक, मौत की कुछ परवाह न कर जहाज के लिए परिश्रम किया / मगर परिणाम कुछ न हुआ। दैवकोप के आगे हमारा परिश्रम निष्फल गया / " फिर वे लोग अपने अपने घर चले गये / बिचारा अनाथ जहाज समुद्र में डूब मरा / सवेरे ही बंदर पर जाकर जहान की तलाश कराई / मगर उसका कहीं पता न मिला / विचारा सेठ रोता हुआ वापिस आया।" देखा पाठक ! वीमा उतर गया। हजारों विपत्तियों से जहाज सहीसलामत बंदर में पहुँच गया; मगर माल उतरवान में आलस्य करने से कितनी हानि हो गई ? कर्जदार घर पर आये। आये / दिवाला निकला और सेठ की करोड़ों की इज्जत कौड़ी हो गई। पाठक ! सेठ को जरूर मूर्ख गिनेंगे / मगर यदि वे उपनय से विचार करेंगे तो उन्हें सेठसे भी संसारी जीव अधिक मूख मालूम होंगे / संसारी जीवों का जहाज निगोद रूपी शिकागो से रवाना हुआ है / जहाँ वह अनन्तकाल तक पड़ा रहा था / वहाँ से वह पृथ्वीकाय, अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय और प्रत्येक वनस्पतिकाय रूपी महासागर में असंख्य काल तक चल कर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरेन्द्रिय रूपी काले समुद्र में