________________ (335 ) बाद कूवा खोदने से क्या लाभ होता है ? पहिले ही से किया हुआ कार्य हमेशा उपयोग में आता है। इसीलिए शास्त्रकार नवीन नवीन युक्तियों द्वारा जीवों को समझाते हैं। मगर भारी कर्मवाले जीव कुछ भी नहीं समझते हैं। मरते समय वे रोने लगते हैं। इससे उनका रोना फिजूल होता है / उल्टे हाय, हाय करके वे द्विगुण कर्म बाँधते हैं / इसीलिए कहा है कि, बंध के समय सचेत रहना और उदय के समय शान्ति से सहना चाहिए। जीव सहन भावों से जिन कर्मों को बाँधते हैं, वे रोनेसे भी कभी नहीं छूटते हैं / अठारहवीं गाथा में स्पष्ट बताया गया ह कि, जीव संसार रूपी महासागर में स्ककृत कर्मानुसार एकेन्द्रिय अवस्था में अव्यक्त दुःख सहते हैं। वे दुःख नारकीय दुःखों के जीवों से भी अनन्तगुणे ज्यादा हैं। गौतम स्वामीने महावीर स्वामी से पूछा कि, हे भगवान निगोद के नीदों को कैसा दुःख है ? उसके उत्तर में भगवानने कहा कि, "हे गौतम ! नारकी के जीव तीव्र असातावेदनीय के उदय से जिस दुःखका अनुभव करते हैं उससे अनन्तगुणा दुःख निगोद के जीव मोगते हैं। उस निगोद के अंदर यह जीव बहुत समय तक रहा है। अकाम निर्जरा के ज़ोरसे धीरे धीरे बढ़ता हुआ, वह मनुष्य हुआ है। यहाँ वह जो चाहे सो कर सकता है। मगर भाग्य के विना कुछ नहीं हो सकता है / यह ठीक है कि, प्राप्त सामग्री व्यर्थ नहीं जाती है। मगर यही सामग्री पुण्यहीन को उल्या फल देती है