________________ ( 334 ) मार्ग को पसंद करता है / इसी तरह मरते समय रोता है कि," हाय ! अब मेरा क्या होगा ? धन, माल, पुत्र और परिवार आदि सब यहीं रह जायेंगे / कोई साथ में नहीं आयगा / कृत कर्म के कटु फल अकेले ही को भोगने पड़ेगे / कोई भी मददगार नहीं होगा।" कहा है किः एकस्य जन्ममरणे गतयश्च शुभाशुभा भवावर्ते / तस्मादाकालिकहितमेकेनैवात्मनः कार्यम् / / ___ भावार्थ-जन्म, मरण अकेले ही को होते हैं। मवावर्त में शुभाशुभ गतियों में भी अकेले ही को फिरना पड़ता है / इसी लिए जन्म से लेकर मरण पर्यन्त अकेले ही को आत्म-हित करना चाहिए। और भी कहा है किःएक्को करेइ कम्मं फलमवि तस्सिकउ समणुहवइ / एको जायइ मरइ य परलोयं एकओ जाइ // भावार्थ- जीव अकेला कर्म करता है और उस कर्म का फल भी अकेला ही भोगता है। वह अकेला ही मरता है; अकेला ही जन्मता है और परलोक में अकेला ही जाता है। जीवने उक्त बातों का स्वयं अनुभव किया है। परन्तु वह समय पर भूल जाता है। दुःख के समय या मरण के समय यदि ये बातें याद आवे तो किस काम की हैं ! आग लगने के