________________ (332 ) तो बिगड़ता ही है। मगर परभव में भी उसको अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं / जीव यदि एकान्त में बैठ कर थोड़ामा शान्ति के साथ विचार करे तो वह फिर कभी पाप न करे / मगर जो जीव -- ढकेल पंजे देढसौ / की तरह अशरण को शरण मानता है उसको शास्त्रकार मूर्ख समझते हैं। जो वस्तु अपनी सम्बन्धिनि की मानी जाती है, वह वास्तव में अपनी संबंधिनी नहीं है। कहा है कि: ऋद्धि सहावतरला रोगजराभंगुरं इयं सरीरं / दोण्हं वि गमनसीला णो किच्चि होज सबंधा // और भी कहा है:मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च / प्रतिजन्म निवर्तन्ते कस्य माता पितापि वा ! // भावार्थ-चंचल स्वभाववाली ऋद्धि और रोग, बुढापा आदि से भंग होनेवाला शरीर दोनों ही, जाने के स्वभाववाले हैं / इन के साथ आत्मा का थोडासा भी संबंध नहीं हो सकता है। ___भिन्न भिन्न जन्मो में हजारों माता पिता हुए और सैकड़ों लड़के व स्त्रियाँ हुई / ( मगर जन्म के साथ ही वे सब बदल गये ) किस की माता है और किस का पिता ? ये सारे संबंध