________________ (330 ) वहाँ उपभोग करते हैं / इसी लिए कहा जाता है कि, दूसरों को और अन्त में अपने को हानि पहुँचानेवाला सदोष तप न कर ऐसा तप करना चाहिए कि जिस में किसी को दुःख न हो। अपने मन, वचन और काया के योग को अशुभ मार्ग से हटा कर शुभ मार्ग में लगाना चाहिए। और निरंतर स्वार का कल्याण के लिए प्रयत्न करना चाहिए। सारे सांसारिक सुखों का त्याग करके मुक्ति के सुखपर ध्यान ध्यान देना चाहिए। दुनिया के सारे सुख, दुःख मिश्रित और नाशमान हैं, इसलिए ज्ञानी पुरुषों को चाहिए कि वे हेय और उपादेय पदार्थ को ध्यान में रख कर, ऐसी कृति करे कि जिससे मुक्ति-मार्ग सरल हो जाय, और जीव मुक्ति मंदिर में चला जाय / सोलहवीं गाथा के कथनानुसार अशरण को शरण माननेवाले जीव संसार में बहुत हैं। क्या स्वर्ण, पशु और मातापितादि कभी किसी को शरण हुए हैं ? जब निज शरीर ही अपने शरण नहीं होता है तो फिर अन्य तो शरण हो ही कैसे सकते हैं ? मगर वे बिचारे अज्ञान के वश हो रहे हैं। इसलिए वह जैसे उनको अँधेरे में फिराता है, वैसे ही वे फिरते हैं। मोहराना नवीन नवीन युक्तियाँ करके जीवों को फंसाये रखता है / वह उन्हें अपने राज्य से बाहिर नहीं निकलने देता है / संसार को छोड़नेवाले कई जीव, बिचारे मोह के फंद में फँस, मूल मार्ग से