________________ ( 328 ) कार कम नहीं हो जाता है। जो कोई आत्मवीर्य का उपयोग रास्ते आत्मवीर्य को उपयोग करने से मुक्ति और अन्य मार्ग में उपयोग करने से भोग मिलते हैं। प्रसंगोपात्त इतना कह अब फिर वीर परमात्मा का अथवा ऋषभदेव प्रभु का उपदेश जो संसार की असारता का सूचक है-बताया जाता है। जीव, कर्म अकेलाही भोगता है। सव्व नच्चा अहिठिए धम्मट्ठी उवहाणवीरिए / गुत्ते जुत्ते सदा जये आयपरे परमायतद्विते // 15 // वित्तं पसवो य नाईओ तं बाले सरणं ति मन्नई। एते मम तेसु वी अहं नो ताणं सरणं न विजई // 16 // भावार्थ-हे धमार्थी मनुष्य ! हेय, ज्ञेय और उपादेय पदार्थ को जानकर सत्य सर्वज्ञ कथित मार्ग को ग्रहण कर; अपने और पर दोनों की उन्नति करने वाले हैं-संपादन करने का यत्न कर। बाल नीव स्वर्णादि द्रव्य, गो, महिष आदि पशु और मातापिता और ज्ञाति को अपना शरणस्थान मानता है / वह समझता है कि-'ये मेरे हैं; मैं इनका हूँ। मगर ज्ञान के अमावसे वह