________________ ( 288 ) जैन सिद्धान्त बतानेवाले सूत्र उपलब्ध हैं / प्रायः कई सिद्धान्तों पर भिन्न 2 आचार्योंने अनेक टीकाएँ बनाई हैं। मगर मूल सूत्रों के आशय की तो सबने एकसी प्ररूपणा की है। यद्यपि टीकाकारोंने अपने क्षयोपशम के अनुसार न्यूनाधिक युक्तियों का विस्तार किया है; तथापि किसीने मूल सूत्र के विरुद्ध व्याख्या नहीं की है। इससे उनकी प्रमाणिकता और भवभीरुता सहनही में सिद्ध होजाती है। जब हम जैनेतर मतानुयायियों के पारस्परिक खंडन को देखते हैं, तब हृदय में दुःख होता है। उस मतवालों के अन्तर में श्रद्धा की कमी होती है। उनके हृदय संशयी बनते हैं। कइयोंने तो घबराकर कह दिया है कि: श्रुतिश्च भिन्ना स्मृतयश्च भिन्ना, नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् / धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां, ___ म्हाजनो येन गतः स पन्थाः // भावार्थ-श्रुतियां भिन्न हैं और स्मृतियाँ भी भिन्न हैं। ऐसा कोई भी मुनि नहीं है कि, जिसका वचन प्रमाणभूत माना जाय / धर्मका तत्त्व गुफा में स्थापित है, इसलिए वही मार्ग है जिसपर महाजन-बड़े पुरुष-गये हैं। ये वाक्य संशय-भाव की सूचना देते हैं। यह बात ठीक है कि, सर्वज्ञ दर्शन के सिवा अन्य दर्शनों में परस्पर विरोधी दोष