________________ (315) और किसी भी जीव को पीडा नहीं पहुंचाता है। मिथ्यात्व मोहनीय की अपेक्षा मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति है। मोहाधीन मनुष्य जितने अनर्थ करें उतने ही थोड़े हैं / पूर्णता के उदय ही से सर्वज्ञ दर्शन पर श्रद्धा होती है। मगर नास्तिकता तो महल ही में उत्पन्न हो जाती है। 'परलोक से कौन आया है ? ' आदि बातें शिथिलाचारी की कही हुई दसवीं गाथा में बताई गई हैं। उसकी कही हुई ऐसी बातें भी लिख दी गई हैं कि जिनसे शिथिलाचारी स्वयं भी नष्ट होता का उत्तर देने के लिए, जान पड़ता है कि ग्यारहवीं गाथा लिखी है। इस गाथा का यदि सूक्ष्मता से विचार किया जाय तो नास्तिक की बातें ऐसे ही उड़ जाती हैं, जैसे कि प्रबल पवन के वेग से तृण उड़ जाते हैं / पहिली बात सिंह के पद चिन्हों की है / पद चिन्ह की बात बना कर सत्य का अपलाप किया गया है / यह ठीक है कि, इससे बालजीवों को थोड़ी देर के लिए शंका हो जाती है / मगर पदार्थ-तत्त्व के ज्ञाता को तो इस बात को सुन कर हँसी आती है / सिंह होता है इसी लिए तो लोगोंने उसकी कल्पना कर ली / यदि नहीं होता तो लोग कल्पना कैसे कर लेते ? वस्तु होती है तब ही कल्पना भी की जाती है / वस्तु के विना कल्पना नहीं होती / क्या कोई कभी हाथी के संग की भी कल्पना करता है ? नहीं / इसी