________________ ऐसे उन को रात में खाने के आदि बनाते हैं / सम्यक्त्व के मूल बारह व्रत की रूढि को छोड़ कर विकथा की रूढि में पडते हैं। प्रतिक्रमण और सामायिक की रीति को भुल कर अवकाश मिलने पर मुनिवरों की तुलना करने लग जाते हैं / वे कहते हैं,-" अमुक साधु इतना पढ़ा हुआ है; अमुक क्रिया पात्र है; अमुक ज्ञानी है; अमुक ध्यानी है और अमुक झगडालु है।" ऐसी बातों द्वारा मुनिपद की अवज्ञा कर बिचारे चारित्र मोहनीय कर्म बांधते हैं / वे समझते हैं कि, हम मध्यस्थ बुद्धिसे विचार करते हैं / मगर ऐसा कहना उन का ढौंग मात्र है / यदि वास्तविक रीतिसे उन्हें सोचना हो तो उन्हें सोचना चाहिए कि,-" हमारे दिन किस प्रकारसे जाते हैं ? हमारे पूर्वजोंने कैसे कैसे कार्य किये थे ? आजकल हमारी प्रवृत्ति कैसी हो रही है ? " आदि / मगर वे तो ऐसा न कर, पवित्र मुनियों की आलोचनाओंसे ही प्रसन्न होते हैं और मारी कर्म बांधते हैं / ऐसा होने का कारण अपने आचारों में शिथिल होना है / मनुष्य फर्सत में-निकम्मा होता है, तब ही विकथाएँ करता है / यदि वह सांसारिक कार्योंसे छुट्टी पाते ही सामायिक प्रतिक्रमण आदि करने लग जाय तो उसे ऐसी विकथाएँ करने का मौका न मिले। कहावत है कि-" निकम्मा मन शैतान का घर / " सो सर्वठा ठीक है इसीलिए शास्त्रकार आचार में लीन रहने का उपदेश देते हैं।