________________ ( 325) उनकी भी सद्गति होनी चाहिए। मगर यह बात सदा याद रखनी चाहिए कि अन्याय से कभी धर्म नहीं होता है / वीर परमात्मा के उपदेश पर, जो कोई व्यक्ति तटस्थ होकर विचार करेगा, उसको अन्य सब उपदेश तुच्छ लगेंगे। मगर कठिनता तो यह है कि, कोई तटस्थ होकर किसी बात का विचार करना नहीं चाहता। मनुष्य प्रायः अपने कुलधर्म को उचित बताने ही की ओर विशेषरया प्रवृत्त होते हैं। कुछ नवीन मतानुयायी लोगों को उनके शास्त्रोंके कुछ श्लोक अच्छे नहीं लगते हैं, इसलिए वे उन श्लोकों को क्षेपक ऊपर से लिखे हुए बताने की या उनके अर्थ बदलने की चेष्टाएँ करते हैं। मगर परस्पर में विरोधी बातें कहनेवाले उन शास्त्रों की संगति छोड़ने का वे साहस नहीं करते। सच तो यह है कि, यदि वे वास्तव में कल्याण के अभिलाषी होते तो, कभी ऐसा व्यर्थ परिश्रम नहीं करते / धर्मशास्त्रों में; सच्चे धर्मशास्त्रों में कभी हिंसा, मृषावाद, अदत्तग्रहण, मैथुनसेवन और परिग्रह का प्रतिपादन नहीं होता। उनमें पाँच महापापों का या उनके कारणों का वर्णन होना सर्वथा असंभव है। जिनमें इन पापों का या इनके कारणों का कथन है, वे शास्त्र नहीं हैं बल्के शस्त्र हैं। वीर परमात्मा के शासन में पूर्वोक्त पाच आत्रवों को छोड़ने का कथन है। उसमें कहीं भी आस्रवों से धर्म नहीं माना गया है। सूत्रों में स्थान स्थान पर जैनसाधुओं को पांच आस्रवों से दूर रहने का उपदेश दियागया