________________ ( 324 ) भावार्थ-राजा धार्मिक हो, और उस समय यदि एक अंगसे ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय का यज्ञ रुका हुआ हो, तो-जो कोई वैश्य बहुत पशुओंवाला हो; मगर यज्ञकर्ता, या सोमप न हो; उसके कुटुम्ब से वह पदार्थ ( हठ से या चोरी से ) यज्ञ की सिद्धि के लिए, हरण करना चाहिए। ऐसा करने का कारण यह है कि, राजा उसी धर्म का होने से यदि वैश्य जाकर फर्याद करे तो भी उसकी सुनाई न हो / ब्राह्मण इतना कहकर ही सन्तुष्ट नहीं हुए / इसी अध्याय में उन्होंने आगे लिखा है कि धाड़ा डालने में भी कोई पाप नहीं है / जैसे योऽसाधुभ्योऽर्थमादाय साधुभ्यः संप्रयच्छति / स कृत्वा प्लवमात्मानं संतारयति तावुभौ // 19 // भावार्थ-जो मनुष्य असाधु ( कृपण और यज्ञादि कर्म हीन ) हो उसके पास से धन लेकर साधु को (ब्राह्मणादि को ) धन देता है। वह अपने आत्मा को तारने के साथ ही उन दोनों को भी तारता है। ऐसी बातें असर्वज्ञों के शास्त्रों में मिलती हैं। पाठको / यदि जबर्दस्ती करने से भी धर्म होता हो और मुक्ति मिलती हो तो, भारत में कई ऐसे उन्मत्त राजा हो गये हैं कि, जिन्होंने हिन्दुओं, जैनों और बौद्धों के मंदिरों को जोर जुल्म से नष्ट किया है और उन्हें बिटाला है; उनको भी मुक्ति मिलनी चाहिए।