________________ ( 323) कहता है-" बीच में ब्राह्मणों को रखकर उपदेशादि कार्य करना चाहिए।" मगर ऐसा करना तो एक कपट मात्र है। जान पड़ता है कि, टीकाकार के पास कोई शूद्र बहुतसा धन लेकर धर्म सुनने के लिए आया होगा। इसलिए उससे धन लेकर अपना स्वार्थ साधने के लिए उसने ऐसा अर्थ किया होगा। यदि मनुजी को यह बात स्वीकार होती तो वे स्वयं एक श्लोक और लिख देते / गर्गाचार्यने, लिखा है कि, स्नेहसे, मोहसे, लोभसे या अज्ञानसे, किसी भी तरहसे, यदि ब्राह्मण किसी शूद्र को उपदेश देता है तो वह नरक में जाता है। इसका भी कोई खास कारण होगा / जान पड़ता है कि, जैसे ब्राह्मणों में और क्षत्रियों में एक वार वैर हो गया था, इसी तरह शुद्रोंने भी ब्रामणों की सेवा नहीं की होगी और इसी लिए उन्होंने नाराज होकर शूद्रों को धर्माधिकार से दूर कर दिया। यह बात मनुस्मृति से सिद्ध होती है कि, थोड़े दिन तक ब्राह्मणोंने भारत में खूब मनमानी और घरजानी की थी। मनुस्मृति के ग्यारहवें अध्ययन में लिखा है कि:- . यज्ञश्चेत् प्रतिरुद्धः स्यादेकेनाङ्गेन यज्वनः / ब्राह्मणस्य विशेषेण धार्मिके सति राजनि // 11 // यो वैश्यः स्याबहुपशुहीनक्रतुरसोमपः / कुटुम्बात्तस्य तद् द्रव्यमाहरेद् यज्ञसिद्धये // 12 //