________________ ( 321 ) वह अवश्यमेव मोक्ष में जाता है, यह बात निःसंदेह है। जैन धर्म की यही तो खूबी है। सखेद कहना पड़ता है कि, अन्य दर्शनवाले शूद्र को उपदेश देने में पाप मानते हैं। इतना ही नहीं वे तो यह भी कहते हैं कि शूद्र को उपदेश देनेवाला नरक में जाता हैं। मनुस्मृति के चौथे अध्याय में लिखा है: न शूद्राय मतिं दद्यान्नोच्छिष्टं न हविष्कृतम् / न चास्योपदिशेद्धर्म न चास्य व्रतमादिशेत् // 8 // भावार्थ-शूद्र को बुद्धि नहीं देना ( अदास) शुद्र को झूठा नहीं देना; ( टीकाकारने यह आशय निकाला है कि, जो दास न हो उसको नहीं देना चाहिए।) होम से बचा हुआ नहीं देना, धर्मोपदेश नहीं करना, और व्रत का आदेश नहीं करना, चाहिए। और भी कहा है:-- यो ह्यस्य धर्ममाचष्टे यश्चैवादिशति व्रतम् / सोऽसंवतं नाम तमः सह तेनैव मज्जति // 81 // भावार्थ-जो मनुष्य शूद्र को धर्म सुनाता है, या व्रत का उपदेश करता है, वह पुरुष असंवत नामा नरक में उस शूद्र के साथ ही डूबता है। अर्थात् सुननेवाले और सुनानेवाले दोनों की दुर्गति होती है। 21