________________ ( 316 ) तरह परलोक है इसी लिए उसकी कल्पना हुई है / अगर परलोक नहीं होने के संबंध में नास्तिकने कहा था कि, जब परलोकी आत्मा ही नहीं है तो फिर परलोक कैसे सिद्ध हो सकता है ? " इसके लिए उससे इतना ही पूछना काफी होगा कि,-तुझे परलोक नहीं होने का ज्ञान कैसे हुआ ? क्यों कि अरूपी पदार्थ का शीघ्रता से निषेध कर सके ऐसा ज्ञान तो तुझ को बिलकुल ही नहीं है।" इसका वह उत्तर देगा कि,मैं तो हरेक बात को प्रत्यक्ष प्रमाण से मानता हूँ। वैसे कोई बात नहीं मानता / उसका उत्तर यह है कि, यदि वह प्रत्यक्ष प्रमाण के विना सब को मिथ्या मानता है तो फिर वह पिता, पितामह आदि का होना प्रत्यक्ष प्रमाण से कैसे प्रमाणित कर सकेगा ? उसको प्रत्यक्ष प्रमाण के विना ही पिता, पितामह आदि का अस्तित्व स्वीकारना पड़ेगा / यदि नहीं स्वीकारेगा तो व्यवहार का लोप हो जायगा / एक बात और है / जिस प्रत्यक्ष प्रमाण को वह मानता है, वह प्रमाण है या अप्रमाण ? यदि वह उसको अप्रमाण बतावेगा, तो अप्रमाण से किती पदार्थ की सिद्धि नहीं होगी / और यदि प्रमाण बता. वेगा तो कोन से प्रमाण से वह उसको प्रमाण मानता है ? यदि प्रत्यक्ष प्रमाण से कहेगा तो उस प्रत्यक्ष प्रमाण को प्रमाण या अप्रमाण बताते अनवस्था दोष आवेगा / यदि उसे अनुमान से प्रमाणरूप मानेगा तो; अनुमान प्रमाण स्वरूप हो