________________ ( 303 ) चाहिए; मगर व्यर्थ का ढौंग नहीं बताना चाहिए / शिथिलाचारियों की कैसी स्थिति होती है, सो बताकर सूत्रकार विषयइच्छा को छोड़ने का उपदेश देते हैं। विषय-इच्छा का त्याग। वाहेण जहा व विच्छए अबले होइ गवं पचोइए। से अंतसो अप्पथामए नाइवहति अबले विसीयति // 5 // एवं कामेसणं विउ अजसुए पयहेज संथवं / कामी कामेण कामए लद्धे वावि अलद्धकण्हइ // 6 // भावार्थ-जैसे पारधी मृगादि पशुओं को दौडा दौडा कर निर्बल बना देता है; और गाडी हाकनेवाला बैलों को आरसे या चाबुक से मार मार कर थका देता है। जिससे वे अन्त में भाग न सकने के कारण मारे जाते हैं, वैसे ही जो साधु इन्द्रिय विषयों में लीन होकर; थककर काम रूपी कीचड़ में फँस जाता है / समय समय पर वह सोचता है कि, आज कल या परसौं मैं विषय-संगति का त्याग कर दूंगा। मगर वह थके हुए बैल के समान विषय रूपी कीचड़ में से बाहिर नहीं निकल सकता है / यहाँ तक कि, वहीं मर जाता है। इसिलिए श्रीवीतराग प्रमु उपदेश देते हैं कि, प्राप्त विषय को अप्राप्त के समान समझकर दूर ही से विषय-वांछा का त्याग करो।