________________ (289) मालुम होते हैं / उनका उल्लेख यहाँ न करके अन्यत्र किया जायगा / हे भव्यो ! सूयगडांग सूत्र के दूसरे अध्ययन का दुसरा उद्देशा यहाँ समाप्त हुआ। अब तीसरे उद्देशे का विचार किया जायेगा। सूयगडांग सूत्र के दूसरे उद्देशे में बताया गया है कि, चारित्रवान जीव निर्विघ्नता से मुक्ति नगरी में पहुँच सकते हैं। तो भी चारित्ररत्न की रक्षा करते समय परिसहों के कारण अनेक विघ्न बीच में आ जाते हैं। मगर सात्विक शिरोमणी मुनिरत्न परिसहों को जीत कर विजयी बनते हैं। दुनिया की भूलमुलैया में न गिर आत्मवीर्य से परिसह फौज को हटा, सुभट श्रेणी की परीक्षा में पास हो, कर्मशत्रु का पराजय करते हैं / वैसे ही सत्य-स्वरूप की कसौटी पर कसा कर स्वनीव की रूपरेखा को निष्कलंक रख कर, स्वसत्ता का उपभोग करते हैं / यह बात तीसरे उद्देशे में क्रमशः बताई जाती है। अगोचर स्त्रीचरित्र संवुडकम्मस्स भिक्खुणोनं दुक्खं पुढं अबोहिए। तं संजमओ वञ्चिजइ मरणं हेव्व वयंति पंडिया // 1 // जं विनवणा अनोसिया संतिन्नेहि समं विहाहिया। तम्हा उठंति पासहा अदक्खुकामाइरोगवं // 2 // 19