________________ ( 293 ) और अब कहाँ माते हो ? " ब्राह्मणने उत्तर दिया:-" लगभग चौदह वर्ष तक रह कर मैंने नौ लाख स्त्री-चरित्र सीखे हैं। अब देश में जाकर आजीविका के लिए उद्यम करूँगा।" राजाने पूछा:-" यहि तुम्हारी आजिविका का यहीं प्रबंध हो जाय तो यहीं रह जाओगे ? " ब्राह्मणने उत्तर दिया:-" हाँ, हम ब्राह्मण भाइयों का तो जहाँ वृत्ति लग जाय वही देश है।" राजाने मासिक वेतन देकर ब्राह्मण को नौकर रख लिया / वह सदैव उसके पास से स्त्रियों के चरित्र सुनने लगा / जैसे जैसे ध्यानपूर्वक जी लगा कर राजा स्त्री चरित्र सुनता जाता था वैसे ही वैसे उसका चित्त स्त्रियों के ऊपर से हटता जाता है / उसका परिणाम यह हुआ कि वह नित्य प्रति अपनी एक एक रानी को छोडने लगा। ऐसे धीरे धीरे उसने 400 राणियों का त्याग कर दिया। तब शहर में और अन्तःपुर में ऐसी बात फैल गई कि राजा राणियों पर अविश्वास करता है / धीरे धीरे वह सारी स्त्रियों को छोड़कर, अन्त में जोगी बनेगा। पट्टरानीने भी यह बात सुनी। पट्टरानीने ब्राह्मण को दंड देना निश्चित किया। बुद्धिमान मनुष्य मूल कारण ही को नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं / उसने दासी को आज्ञा दी:-"जा, राना को स्त्रीचरित्र सुनानेवाले ब्राह्मण को बुला ला।" दासी ब्राह्मण के पास गई। मगर ब्राह्मणने उस की बात नहीं सुनी। दासी वापिस राणी के पास गई और कहने लगी:-" रानी साहिबा ! ब्राह्मण