________________ ( 292 ) स्त्री के गहन और अगोचर चरित्र को प्रेम-भक्ति समझ कर व्यर्थ हाथ पैर मारता है। उसके लिए अपने पूर्ण उपकारी मातापिता का तिरस्कार करने में भी आगा पीछा नहीं करता है / कष्ट में काम आनेवाले बंधुवर्ग के साथ स्त्री के कहने से विरोध कर लेता है / वह देव, गुरु और धर्म की आज्ञा से भी स्त्री की आज्ञा को अधिक मानना है। तो भी स्त्री अपना स्वभाव नहीं छोड़ती है। प्रिय पाठक ! जैसे पानी में चलती हुई मछलियों के पैरों को जानना कठिन है; आकाश में उड़ते हुए पक्षियों की पदपंक्ति को देखना मुश्किल है। इसी तरह स्त्रियों का चरित्र जानना भी मुश्किल है, इसके लिए यहाँ एक छोटासा उदाहरण दिया जाता है। ___" एक ब्राह्मण काशी जैसे नगर में रह कर स्त्रियों के नौ लाख चरित्र सीखा और अपने देश को चला / मार्ग में एक बहुत बड़ी राजधानी आई / ब्राह्मणने सोचा के राजा के पास जाकर आशीर्वाद हूँ। ताकी मार्ग में जो खर्चा हुआ है और होगा वह मिल जाय / यह सोच कर वह राजा के पास गया। राजाने सम्मानपूर्वक दान दिया / और पूछा:-" आप कहाँ से आये हैं ? " ब्राह्मणने उत्तर दियाः-" काशीनी से।" राजाने पूछा:-" काशी में कितने बरस रहे ? क्या अभ्यास किया !