________________ ( 290) भावार्थ-मिथ्यादर्शन, अदिरति, प्रमाद, कषाय और जोग ये कर्मबंध के कारण हैं इनसे निवृत्त बना हुआ और भिक्षा करनेवाला साधु अज्ञान से बाँधे हुए कर्मों का संयमद्वारा नाश कर, मरणादि को छोड़ मुक्ति में जाता है / ऐसा पंडित लोग कहते हैं। 2 जो स्त्री के बंधन में नहीं पडा है वह संसार से पार पाये हुए जीव के समान है। इसलिए तुम ऊर्ध्व जो मोक्ष है उसको देखो। जो काम को रोग के समान देखते हैं वे भी मुक्त जीव के समान ही हैं। कर्मबंध के कारणों का अभाव कर्म के अभाव को सूचित करता है / क्योंकि कारण की सत्ता में कार्य की सत्ता है। कर्मबंध के कारणों से दूर रहनेवाला शीघ्र ही कर्मों से दूर हो जाता है / उदाहरणार्थ एक तालाब को लो / तालाब पूरा भरा हुआ होने पर भी उसमें पानी आना रोक दिया जाय और पहिले का पानी बराबर काम में आता रहे तो थोड़े ही समय में वह तालाब सूख जाता है। इसी तरह आत्माराम रूप सरोवर कर्मरूपी जल से भरा हुआ है / यदि कर्मबंध के कारण रोक दिये जायँ तो नवीन कर्मों का आना रुक जाता है और जप, तप, ज्ञान, ध्यान आदि से पुराने कर्म नष्ट हो जाते हैं / अज्ञान भावों से बँधे हुए वर्मबद्ध संज्ञा को पाते हैं / वे