________________ ( 286 ) आर्य देश इत्यादि को सदनुष्ठान का कारण समझकर, धर्म-धर्म में बड़ा अन्तर है। इसलिये ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप विशेष धर्म को पालन करनेवाले गुरु के आज्ञा वशवर्ती हजारों जीव संसार महासागर से पार हुए, ऐप्ता मैं तुझे कहता इं, ऐसा नहीं, परन्तु श्री ऋषभादि तीर्थकर कह गये हैं ऐसा कहता हूं। यह बचन महावीर का है। इसको लेकर सुधर्मास्वामी जंबूस्वामि को कहते हैं। केवल उन्हीं लोगों का उपदेश तत्वपूर्ण होता है जो जगज्जीवों के हितैषी होते हैं / इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थकर हो गये हैं। उन सबका उपदेश एकसा हुआ है। शब्द रचना में परिवर्तन होसकता है। भाव एक हैं। शब्द रचना तो देश, कालके अनुसार होती है। भगवान श्री महावीर स्वामी संस्कृत भाषा को जानते थे। वे सब भाषाओं के ज्ञाता थे / तो भी उन्होंने बालक, स्त्रियाँ, चारित्रधर्माभिलाषी और मंदबुद्धि लोगों के हितार्थ उपदेश भाषा में दिया। कहा है कि: बालस्त्रीमन्दमूर्खाणां नृणां चारित्रकांक्षिणां / अनुग्रहार्थं तत्वज्ञैः सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः // उक्त हेतुसे सिद्धान्त प्राकृत भाषा में निबद्ध हुए। श्रीमहावीर स्वामी के उपदेश में शान्ति की वृद्धि के सिवा अन्य उपदेश नहीं है / श्री महावीर स्वामी का शासन अबतक भी