________________ ( 275 ) कि, ऐसी कठिन क्रिया करने से क्या होगा ? इसका परिणाम क्या अच्छा होगा ? भाइयो ! विषयों को छोड़े विना क्या सुंदर और अच्छा परिणाम हो सकता है ? नहीं / इसी लिए श्री वीतरागप्रभुने शब्दादि विषयों को जीतने का साधुओं को उपदेश दिया है। यानी साधु वे ही कहे जा सकते हैं जो शब्दादि विषयों को जीतते हैं इसके सिवाय परस्पर में धर्म की चर्चा करने का उपदेश दिया गया है। यह बात भी बहुत अच्छी है। जिस गच्छ में सारणा-वारणा न हो वह गच्छ साधुओं को छोड़ देना चाहिए / जिस गच्छ में सारणा-वारणादिक हो उस में यदि गुरु दंड दे तो भी साधु को उस गच्छ का त्याग नहीं करना चाहिए। यदि सारणा वारणा न हो तो वर्तमान में जो दशा हिन्दु बावाओं की हो रही है वही दशा वीतराग के शासन में प्रवृत्ति करनेवाले साधुओं की भी हो जाय। इसलिए हितशिक्षापूर्वक अवश्यमेव धर्मचर्चा होनी चाहिए। विषय के त्याग के लिए उपदेश करते हुए सूत्रकार और भी कहते हैं कि: मा पेह पुरा पणामए अभिकंखे उवहिं धुणित्तर / जे दमण तेहिं णो णया ते जाणंति समाहिमाहियं // 27 // णो काहिए होज्ज संजए पासणिए ण य संपसारए / नचा धम्म अणुत्तरं कयकिरिए ण यावि मामए // 28 //